शुक्रवार, 5 जून 2009

छत्तीसगढ़ ला बचाय बर अऊ बनाय बर....

  • मितान परंपरा -
गंगा जल,महापरसाद,भोजली,जंवारा,गंगा बारू,तुलसीजल,नरियर फूल असन मितान अऊ फूल-फुलवारी बध के अपय मया के बंधना ला पोठ करे जाय ।

  • गउ अउ धरती महतारी के सेवा -
दूध,दहि,घी,गोबर अउ गोमूत्र जइसे दिब्य दवई के संगे-संग किसान के संगवारी बइला देवइय्या गउ माता अउ हमर जिनगी के सिरजइय्या धरती महतारी के जी जान ले सेवा करे जाय । ऋषि-कृषि ल बढ़ाया दिये जाय ।

  • सियान मन के आसीस -
सियान मनखे मन करा अनुभव अउ ज्ञान के अथाह भंडार रथे । ऊँच-नीच,सुख-दुख,अउ दुनियादारी सबला देखे सुने अउ सहे हे वोमन।ऊँखर छाइत अउ आर्शीवाद हमर ताकत ए।
वोला बिसराना नइहे ।

  • खेती बँटवारा उचित नइहे -
खेती के बँटवारा नइ करके उपज ल बांटे म जादा भलई हे ।

  • पुरखउती खेल अउ लोक साहित्य के चलन -
हमर पुरखउती खेल कबड्डी,गोंटा,खो-खो,फुगड़ी,सुरगोड़ा के संग-संग लोक साहित्य , कहानी,
कंथली, हाना-बाना,जनउला,लोकगीत ल जादा ले जादा चलन म लाये बर परही ।

  • नसा के नास अउ सापर भाव के आस -
बिनास के जर नसा अउ जुआ-चित्ती ले दुरिहा रहना जरूरी हे । सहकार-सापर के भावना ल पनपा के साहूकार मन के चंगुल ले बचे बर परही ।

साभारः केशवराम साहू 

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